कर्ता और कर्म
कर्ता और कर्म
भोर भयी दिनकर चढ़ आया।
दूर हुआ तम का अब साया।।
कर्मवीर तुम अब तो जागो।
लक्ष्य साध यह आलस त्यागो।।
हार-जीत सब कर्म दिलाता।
ध्यान धरे वह मंज़िल पाता।।
हार कभी न कर्म पर भारी।
यह सब कहते नर अरु नारी।।
कर्म बड़ा है भाग्य से,लेना इतना जान।
कर्म दिलाता जीत को, कर्म बने पहचान।।
कर्म करो फल चिंता छोड़ो।
कर्म धर्म का रिश्ता जोड़ो।।
कर्म करो किस्मत सँवरेगी।
मन चाही फिर गति मिलेगी।।
करना क्या ये मन में ठानो।
कर्मों का फल निश्चित जानो।।
स्वर्ग नहुष को कर्म दिलाया।
कर्म मार्ग तुलसी प्रभु पाया।।
लेकर कुछ उद्देश्य हम,आये इस संसार।
पूरा करना है अगर, लेना कर्म संवार।।
सत संयम से सब कुछ पाओ।
बुरे मार्ग को मत अपनाओ।।
लोभ द्वेष जिसके मन होता।
वह अपना सब कुछ है खोता।।
मार्ग मिले नहिं मंजिल पाता।
लक्ष्य रहित जीवन हो जाता।।
मोह जाल में कभी न पड़ना।
सोच समझ कर आगे बढ़ना।।
मोह जाल चहुँ ओर है, बचकर चलना आप।
जो फँसता इस जाल में, पाता वह संताप।।