वैश्या की ममता
वैश्या की ममता
इक जरा सी चाह में तु हर रोज़ खुद को बेचती हो।
ऐसा करके तु अपने नज़रों से नज़रे क्यों फेरती हो।
हर रोज़ हर शाम तु एक महफ़िल सजाती हो।
अपने बच्चे से अपने अस्तित्व के बारे मे क्यों न बतलाती हो।
तुम्हारे ऊपर ना है किसी का जोड़, ना है कोई ज़बरदस्तती ।
तो तुम क्यों रह रही हो ऐसी बस्ती में।
हर मॉं की इच्छा है मेरे बच्चे को ना हो कोई कमी।
तेरे काम से हो सकता है तेरे बच्चे को मान, सम्मान, इज़्ज़त की कमी।
ऐसा काम क्यों कर रही हो, जिससे मां बेटे एक दूसरे से दूर रहे।
ऐसा काम क्यों कर रही हो, जिसका पता चलने का एक डर रहे।
तुम जानती हो यह काम न है अच्छा।
तेरे काम के बारे जानकर ना जी पाएगा तेरा बच्चा।
जब तेरा बेटा बन जाएगा एक बड़ा हस्ती।
बुढ़ापे मे तु छोड़ कर आएगी अपनी वो बस्ती।
दुनिया देखेगी
एक वैश्या रह रही एक हस्ती के घर पे।
तो क्या दुनिया रह पाएगी मुँह बंद कर के।
पता चलेगा तो क्या तेरा बेटा रहेगा हस्ती।
क्या वह बसा पाएगा अपना गृहस्थी।
हर रोज़ तु वैश्या है यह प्रचार कर रही हो।
अपने बच्चे की ज़िंदगी को ओर अंधेरा कर रही हो।
मुझे मालूम है तुझे किस बात का डर है।
तु यह काम छोड़ देगी।
तो कहीं गरीबी तेरे बेटे को झिजोड ना दे।