शब्द
शब्द
शब्द शब्द कम पड़ जाते थे
जब भी कहना होता था
कुछ भी तुम्हें और मैं
बस मंद-सी मुस्कुरा देती थी
कैसे हो जाता है सब ऐसा
अनकहा जिसमें,
लफ्ज मुस्कान बन
बिखर जाते हैं इर्द-गिर्द
और आधा-अधूरा
अनकहा ही रह
जाता है हवाओ में
मैंने देखा है
महसूस भी किया है
आजकल बेसमय उदास/खुश
रहने लगी हूँ मैं और
अब तुम भी तो मेरी आंखें
पढ़ना सीख रहे हो।