जुदा कर गऐ
जुदा कर गऐ
तुम्हे मेरे परछाई से अलग
जाते हुऐ देखा
मुस्कुरा कर पैरों से मेरे रूह को ठोकर मारते हुऐ देखा...
ताज्जुब की बात है
जिस काया से तुम्हेंं बेहद प्रेम थी उससे जलाते हुऐ देखा...।
तुम कह देते एक बार तो
हम कूछ मौक़ा और देते
यूँ बेवजह हर अक्स को
दम तोड़ते हुऐ देखा...।
रहते थे तुम जिस महल्ले मे
उससे वीरान होते हुऐ देखा
रजनीगंधा को महकते मेरे आँगन मेंं
सदियों पहले देखा.....।
मिलन की रात तुम बहुत ख़ुश थे
उस रात को आज सैलाब बनते देखा
मिटे गीले सपनों को
धूप की आँधी मे भाँप बनते हुऐ देखा....।
वह कौन सी आग थी पहली बार
पूरे शहर को फूँकते हुऐ देखा
तुम क्या गये मेरे दामन से दूर
रोज़ रोज़ छत पर चाँद को जलते हुऐ देखा....।