नदियाँ
नदियाँ
बह जाती हूँ किसी नदी की तरह
अपने निशान छोड के हर तरफ
मैं रुद्र भी हूँ और सौम्य भी हूँ
उठती हूँ हवा के झोके सी
पर बहती ही रहती हूँ
अपने रुख की तरफ
कहीं तो मंजील ए ज़िन्दगी मिलेगी
तो अपनी हस्ती छोड़ दूँ ज़रा
बस बहती ही हूँ , कभी ज्यादा कभी ज़रा