मीरा
मीरा
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कई दिनों से ढूंढ रही थी
मीरा तुमको मैं चिंतन में
पा गोविन्द को बाँवरी हो जाऊं
तर जाऊं मैं जीवन में
मन का सारा प्रेम सूखता
अंतर में निस्पंद पड़ा
जलद बंधन का पिघल जाएगा
बन जाऊं यदि मीरा मैं
कई दिनों से ढूंढ रही
मीरा तुम को मैं चिंतन में
गीत कोई मुझ से लिखवाओ
उन्मुक्त करे जो बंधन से
प्रेम मेरा समर्पण को तरसता
पर होता व्यय दासता में
माधव नाम की अलक जगा दो
बन जाऊंगी जोगन मैं
कई दिनों से ढूंढ रही थी
मीरा तुमको मैं किस्सों में
पर मिली सोई सी बेसुध
तुम मेरे ही अंतर में
कई दिनों से ढूंढ रही थी...