“इख़्तियार!”
“इख़्तियार!”
मोहब्बत की हर बात पे आँसू बहा क्यों
तेरा ज़िक्र तेरा चर्चा हर वक़्त रहा क्यों?
उम्मीद यूँ तो मुझको कुछ ज़्यादा ना थी
जब तूने सुनना नहीं था मैंने कहा क्यों?
तूने तो मेरी बाबत सोचा ना होगा कभी
आख़िर तेरा ही इंतज़ार मुझे रहा क्यों?
दिल पर माना किसी का इख़्तियार नहीं
ग़म देना तेरी आदत सही मैंने सहा क्यों?
आज नहीं तो कल शायद तू मिल जाये
यह रौशन ख़्याल मेरे दिल में रहा क्यों?