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Usha Tiwari

Others

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Usha Tiwari

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पाँच ग़ज़लें

पाँच ग़ज़लें

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ग़ज़ल-1

 

इंकार में इकरार ढूँढता है दिल

नफ़रत में भी प्यार ढूँढता है दिल ।

 

ये हसरतें भी कितने अजीज हैं देखो

खिजाँओ मेम भी बहार ढूँढता है दिल ।

 

ऐ दोस्त ! तुझे तेरी इस कायनात में

शामो-सहर लगातार ढूँढता है दिल ।

 

तेरी अज़मत से वाकिफ हूँ ऐ खुदा !

तेरी जन्नत का द्वार ढूँढता है दिल ।

 

डूब कर इबादत में और सज़दे में

रोज़ो-शब तुझमें यार ढूँढता है दिल ।

 

 

ग़ज़ल-2

 

हमारे लिऐ देश है प्राण-प्यारा।

इसी से मिला ज़िंदगी है हमारा।

 

सभी स्वार्थ में साथ देते परन्तु

हमें देश नि:स्वार्थ देता सहारा।

 

नहीं भूलना फ़र्ज़ को देश वासी

कभी क़ौम से तू न होना नकारा । 

 

मरेँ तो हमें लोग बोलें शहीद

ज़मीं के लिऐ लौट आऐं दुबारा।

 

चलो देश को स्वर्ग जैसा सँवारें

सुहाना सुहाना दिखाऐं नज़ारा।

 

ग़ज़ल- 3

 

कैसे पैसे के पीछे पड़ा है कोई

हाथ अपना पसारे खड़ा है कोई

 

अपनी कुदरत की माया ज़रा देखिये

हँस रहा है कोई रो रहा है कोई

 

इस ज़माने की रफ़्तार क्या हम कहें

सिर्फ़ अपना ही दामन भरा है कोई

 

इश्क़ का लोग सजदा कहाँ कर रहे

अब नहीं इश्क़ का बाबला है कोई

 

ये उषा तेरे वश का नहीं रह गया

दिल लगाकर भी तुमसे बुरा है कोई

 

ग़ज़ल-4

 

देश अपना दर-बदर अब हो रहा है

नौजवाँ लेकिन यहाँ का सो रहा है

 

देख कर हालात की ग़द्दारियों को

मुल्क क्या यह आसमाँ भी रो रहा है

 

ढूँढ लो घर में छुपा है कौन अपना

बीज नफ़रत का यहाँ जो बो रहा है

 

जो समझता है वफ़ा के फलसफ़े को

प्यार आँखों में वो अपनी ढो रहा है

 

क्या कहेंगे इस नऐ बाज़ार में अब

घर हमारा शर्म अपनी खो रहा है

 

ग़ज़ल-5

 

आग जैसे उगल रहीं आँखें

कितनी ख़ामोश जल रहीं आँखें

 

देख हालात की ये बेचैनी

हर किसी की निकल रहीं आँखें

 

छोड़ना जब पड़ा नगर अपना

देर तक ये सजल रहीं आँखें

 

जब भी गुलशन से मैं गुज़रती हूँ

बन ही जाती हैं ये कमल आँखें

 

ज़िन्दगी सब बता के जाती हैं

तेरी मासूम सी ग़ज़ल आँखें


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