प्रेम: एक दुर्लभ जिन्स
प्रेम: एक दुर्लभ जिन्स
आख़िर क्या है वह
जो हमें बाँधता है
प्राणों से प्राणों को
साँसों में पवित्र ऊष्मा
विचारों में उदात्तता
शब्दों में मन्त्र की सघनता और संश्लिष्टता
क्या है वह
जो हमें
और हमारे सम्पूर्ण क्रिया-व्यापार को
भर देता है
एक अपूर्व उजलेपन से
रौशनी के
एक अनिर्वचनीय प्रभामण्डल से
गुज़रता रहता है
हमारा अस्तित्व
सृष्टि
नहाई दिखती है
ताज़गी के जल से
ये पेड़
ये पौधे
ये परबत
ये नदी
ये समुद्र
ये बाग
ये बगीचे
ये कुऐं
ये तालाब
ये पोखर
ये गाँव
ये कस्बे
ये शहर
ये झोंपड़ी
ये महल
ये मज़दूर
ये किसान
झिलमिलाते हैं जिनमें
असंख्य स्वेद बिन्दु
और लगता है कि
स्वर्ग अगर कहीं है
तो यहीं है
इसी धरती पर
यह कोई गैबी ताक़त है
यह कोई अमानुष शक्ति है
यह कोई अदृश्य सूत्र है
जो गुँथा हुआ है
हम सब में
एक चमत्कार की तरह
एक दुर्लभ जिन्स है यह
जिसे हम जानते हैं
मगर पहचानते नहीं!