क्या हो जो क्या बनने की बात करते हो
क्या हो जो क्या बनने की बात करते हो
क्या हो जो क्या बनने की बात करते हो...
ख़ुद को ख़ुदसे रूबरू कराते चंद अल्फ़ाज़..!!
तृष्णा तुम्हें ही तो हैं,
फिर तुम भगवन की बात करते हो।
मोह माया के मेहख़ाने हर गली में,
फिर तुम वहा खड़े मोक्ष की बात करते हो।
यु गैरो में अपने ढूँढते हुऐ,
अपनों के रूठ जानें की बात करते हो।
गरीब से मोल भाव कर,
तुम मज़हब की बात करते हो।
औरत को दहलीज़ में रख,
तुम बेटी बचाने की बात करते हो।
यूँ चंद पैसों के लिऐ,
आत्मा को बेचने की बात करते हो।
प्यार के खिलाफ़ खड़े हो,
और मीरा कान्हा की बात करते हो।
यूँ रोज़ थाली में खाना छोड़,
तुम सड़क पर भूखे बच्चों की बात करते हो।
जानवर को मार कर,
तुम रोज़ ज़िंदा रहने की बात करते हो।
इंसानियत को हर रोज़ मार,
तुम इंसान होने की बात करते हो।।
©कविता शर्मा