दिल से दुनिया तक
दिल से दुनिया तक
गज़ब का शौक है उन्हें हरियाली का,
रोज़ आकर ज़ख्मों को हरा कर जाते हैं ....
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने,
बात तो सच है ये मगर बात है रुस्वाई की...
जूझती रही, टूटती रही, बिखरती रही,
कुछ इस तरह ज़िंदगी हमारी निखरती रही ...
वो कितना मेहरबान निकला कि मुझे लाखों का गम दे गया,
और हम इतने खुदगर्ज़ कि उसे प्यार के सिवा कुछ और दे ही न सके ...
अजब पहेलियाँ हैं मेरे हाथों की इन लकीरों में,
सफर तो लिखा है मगर मंज़िलों का निशान नहीं....
बर्बाद बस्तियों में किसे ढूँढते हो दोस्त,
उजड़े हुए लोगो के ठिकाने नही होते ...
है किस्मत हमारी आसमान में चमकते सितारे जैसी,
लोग अपनी तमन्नाओं के लिए हमारे टूटने का इंतेज़ार करते है ...
हमने कब माँगा है तुमसे वफ़ाओं का सिलसिला,
बस दर्द देते रहा करो, मोहब्बत बढ़ती जायेगी….
ज़हर ............. मरने के लिए तो थोड़ा सा,
पर जीने के लिए बहुत सारा पीना पड़ता है ..
ढूँढोगे अगर, तो ही रास्ते मिलेंगे,
मंज़िलों की फितरत है ख़ुद चलकर नहीं आती ....
अगर तुम्हें यक़ीन नहीं तो कहने को कुछ नहीं हैं मेरे पास,
अगर तुम्हें यक़ीन हैं तो मुझे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं....
यह तो यादों का रिश्ता है जो छूटता नहीं,
वरना मुद्दत हुई, वो दामन छुड़ाकर चले गए ....
वो बेगानो में अपने, और हम अपनों में अंजान लगते हैं,
हमारे ख़ून की क़ीमत नहीं, उनके तो अश्क़ों के भी दाम लगते हैं…
तन्हा हुए तो एहसास हुआ,
कि कई घंटे होते है एक दिन में…
जिस को जाना ही नहीं उस को ख़ुदा कैसे कहें,
और जिस को जान लिया वो ख़ुदा कैसे हो ….
मंज़िल पाना तो बहुत दूर की बात है,
गुरूर में रहोगे तो रास्ते भी ना देख पाओगे….
हाल पूछ लेने से कौन सा हाल ठीक हो जाता है,
बस एक तसल्ली सी हो जाती है कि इस भीड़ भरी दुनिया में कोई अपना भी है।
नया नया शौक उन्हें रूठने का लगता है,
ख़ुद ही भूल जाते है कि रूठे थे किस बात पर ....
वक़्त भी लेता हैं करवटें कैसी कैसी,
इतनी तो उम्र भी नहीं, जितने सबक सीख लिऐ ...
छुपाने लगी हूँ आजकल कुछ राज अपने आप से,
सुना है कुछ लोग मुझे मुझसे ज्यादा जानने लगे हैं....
तू हवा के रुख पे चाहतों का दिया जलाने की ज़िद न कर,
ये क़ातिलों का शहर है यहाँ तू मुस्कुराने की ज़िद न कर …
पानी दरिया में हो या आँखों में,
गहराई और राज़ दोनों में होते हैं…
वो ज़हर देकर मारते तो दुनिया की नज़र में आ जाते,
अंदाजे कत्ल तो देखो हमसे शादी ही कर ली ……
मंज़िलों के ग़म में रोने से मंज़िलें नहीं मिलती,
हौसले भी टूट जाते हैं अक्सर उदास रहने से …..
हजारों हैं मेरे शब्दों के दीवाने,
मेरी ख़ामोशी सुनने वाला भी कोई होता तो क्या बात थी...
तुम्हें शिकायत है कि मुझे बदल दिया है वक़्त ने,
कभी ख़ुद से भी तो सवाल कर कि क्या तू वही है …
तकलीफ़ मिट गयी मगर एहसास रह गया,
ख़ुश हूँ कि कुछ न कुछ तो मेरे पास रह गया।
अब समझ लेती हूँ मीठे लफ़्ज़ों की कड़वाहट,
तज़ुर्बा हो गया है ज़िन्दगी का थोड़ा थोड़ा ....
मैं फना हो गयी, मगर अफ़सोस वो बदला नही,
मेरी चाहतों से भी सच्ची उसकी नफ़रत रही ....
बस इतना ही नीचा रखना मुझे, ऐ ख़ुदा,
कि हर दिल दुआ देने को मजबूर हो जाये…
बड़ी अजीब सी है शहरों की रौशनी,
उजालों के बावजूद चेहरे पहचानना मुश्किल है।
तुम्हारी ख़ुशियों के ठिकाने बहुत होंगे मगर,
हमारी बेचैनियों की वजह बस तुम हो ….
वहम से भी अक्सर ख़त्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते,
कसूर हर बार गलतियों का नहीं होता ...
ख़ुद न छुपा सके वो अपना चेहरा नक़ाब में,
बेवज़ह हमारी आँखों पे इल्ज़ाम लग गया ….
कम समय में जो लोग दिल में उतर जाते हैं
कम ही समय में वो लोग दिल से उतर भी जाते है ....
वो एक बात बहुत कड़वी कही थी उसने,
बात तो याद नहीं, बस याद है लहज़ा उसका।
वो लफ्ज कहाँ से लाऊँ जो तेरे दिल को मोम कर दें,
मेरा वजूद पिघल रहा है तेरी बेरूखी से …..
हमें बरबाद करना है तो हमसे प्यार करो,
नफ़रत करोगे तो ख़ुद बरबाद हो जाओगे ……