मिट्टी की खूशबू
मिट्टी की खूशबू
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बेटी ने कहा "माँ बाहर बरसात हो रही हैं",
ना जाने कहाँ से बचपन की मिट्टी की सौधीं खुशबू
भीतर तक भिगो गई मुझे
वो खुला आँगन, आम की टहनी पर
बाबा का डाला झूला
और अखबारी कागज़ की मुड़ी तुड़ी सी नाव
झम झम बारिश की बूंदो पर पतवार
चलाने की चाहत.....
अब मेरी बालकनी से र्सिफ
कुछ बादल के टुकड़े ही दिखते हैं
हैरानी नही होती कि मेरे बच्चे
बरसात में भिगने से क्यों डरते हैं
अब हम शहर में रहते हैं
यहाँ बूदें घर के अंदर ना आ जाये
इसलिये किवाड़ और खिड़कियाँ
हमारे ह्दय की तरह बंद कर ली जाती हैं
पतवार चलाने की चाहत गाँव की
मिट्टी तक ही सिमित रह गई हैं....
पर बाबा का डाला वो झूला
आम की शाखों पर अब भी होगा
तभी मन हटी बालक की तरह
उँगली थामे गावँ की पगडंडियों
पर अक्सर ही निकल पड़ता है....