शीशा ए रियासत नहीं
शीशा ए रियासत नहीं
कोई विकल्प नहीं
कोई संकल्प नहीं
तुम होगे धारा तीन सत्तर
मै बेचारी सियासत नहीं ॥
साझा हुई थी नज़र
फिर लगी थी ख़बर
भूखे थे हम यार
भुखमरी कोई नफासत नहीं॥
तुम तुम्ही हो तो
हम, हम ही हैं !
ठोकरों से हुये हैं मज़बूत
हम कोई शीशा ए रियासत नहीं ॥
खुद को रखना बचाकर
हँसे कोई जब गिराकर
देखना उठना सम्भलकर
आदमीयत है कोई भगवान नहीं ॥
जा छोड़ दिया हमने
दफन किया इकरार
तुमसे हुआ था प्यार
कोई विरासत एग्रीमेंट नहीं ॥