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Hare Prakash Upadhyay

Others

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Hare Prakash Upadhyay

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अधूरे प्रेम का अँधेरा

अधूरे प्रेम का अँधेरा

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तुम्हारे जितने भी नखरे थे

सब अनमोल थे मेरे लिऐ

चुन-चुन के दिल में टाँक लिऐ

 

फूल जो पसंद थे तुम्हें

लाया कहाँ-कहाँ से बटोरकर

वे सारे रंग

वह रौशनी, वह तालाब

वह नदी का किनारा वह नाव

वह हमारे ऊपर हरसिंगार के फूलों का झड़ना

गुडनाइट और गुडमार्निंग के बीच के तमाम चुहल भरे और उत्तेजक मैसेजे़स

पता नहीं तुम्हें याद हैं कि भूल गई

कवियों की वे सारी श्रृंगारिक उपमाऐं मैंने याद कर लीं

उन सारे ज़रूरी रागों और अलंकारों के पीछे मैं दीवाना हुआ

जो हमारे ज़रूरत की न थीं वे चीज़ें भी कितनी ज़रूरी हुईं

 

पार्कों में और बसों की सीटों के पीछे

जो मैं नाम लिखता रहा तुम्हारा

छोड़ो उनको हाथ पर एक दिन

चाकू से भी गोद लिया

तुम्हारे नाम का पहला अक्षर

और तुमने जब भी मेंहदी रचाई अपनी हथेलियों पर

लिखा मेरे नाम का पहला अक्षर

उसमें छुपाकर तमाम आशंकाओं के बावज़ूद

हमने परस्पर हाथों में हाथ लेते-देते हुऐ

न जाने कितनी और कैसी-कैसी कसमें खाईं वादे किये

न पूरे होने को अभिशप्त बहुतेरे

अनेक मुलाकातें, छुप्पम-छुपाई...आँसू

रूमाल

और हम अजनबी हो गऐ

तुम्हें ले गया कोई मेरा दुश्मन

पता नहीं जानू कितना बनेगा वह तुम्हारा

 

जब तुम अपने शहर से 

और मेरे दिल से 

रोती हुई चली गई तो मैंने जाना

तुम अपने शहर तो बार-बार लौटती हो

जैसे मेरे दिल में

आखिर आदमी खोकर अपनी स्मृतियाँ और अतीत कैसे जिऐगा

 

अपने प्यार के बारे में क्या कहूँ

यह किस्सा इतना उलझा हुआ

और इतना मुश्किल कि समझ में आया नहीं

एक दिन तुम्हारी सारी चिट्ठियाँ निकालीं

तो उसमें बरामद हुऐ वे तमाम फूल हमारी मस्ती के

मोर पंख, पार्क, नदी, झील, नाव

आँसू, हँसी, उलाहने, फिकरे सब

न जाने कितनी-कितनी चीजे़ं

देर तक सोचता रहा कहाँ इन्हें बचाऊँ

एक मन तो यह भी हुआ कि 

आखिर इन्हें रखूँ ही क्यों 

न रखूँ तो कहो

तुम्हीं कहो इन्हें कहाँ लुटाऊँ

कहाँ फेंक आऊँ

 

इन चीज़ों में

इतनी जगमग रौशनी

अँधेरा ज़रा-सा नहीं

जिसके  बारे में तुम अक्सर बताया करती थी

कि वह जब छाता है

तो आकाश में सुंदर-सुंदर तारे निकल आते हैं

बच्चों की तरह चंदा मामा की उँगली थामे

मैं कायर था प्रिय

अँधेरे से डरता था

हम जब भी कहीं निकलते

अँधेरे से पहले लौट आते अपने-अपने कुनबों में

आपस में बिछड़कर

 

छोटे क़स्बे के प्रेमी थे हम

साहस कम था

नहीं तो करते रात का सामना करते प्रेम तो क्या

हमारे लिऐ नहीं होती कोई सुबह...?


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