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Kanchan Jharkhande

Abstract

5.0  

Kanchan Jharkhande

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मृत्यु से पूर्व की व्यथा

मृत्यु से पूर्व की व्यथा

1 min
314


वह मर रहा था,

लेकिन मरने से पहले यह ज़रूरी था कि

वह उन्हें उस ताले की चाबी देता...

क्या कभी सोचा है,

मृत्यु से पूर्व व्यक्ति के मन में

क्या अस्थिरता होती हैं,


लग रहा था कि प्राण निकलने को हैं

जाने से पूर्व सबको एकाग्र बुलाकर

कर लेता चर्चा भविष्य की

मरने से पहले यह ज़रूरी था कि

खेतों की सूखी भूमि को


सींच जाता मैं सदैव के लिये

सो, छुटकी के विवाह में

दर-बदर न फिरना पड़े

मरने से पहले यह ज़रूरी था कि

की बिट्टू की स्कूल की फीस रख जाता

अन्न और आश्रय का जुगाड़ कर जाता

आज ही जायदात का बटवारा हो जाये


कल को कौन सा सिक्का खोटा निकल जाए

अपनों की फिकर भी

कुछ इस कदर सता रही थी

झटके से नहीं,


जान आहिस्ता-आहिस्ता जा रही थी

भावुकक था भीतर से की,

दो पल और ठहर जाता

यह प्राण निकलना आज जरूरी है क्या,

कल आराम से निकल जाता

काश इन दो पलों में


मैं बहुत कुछ कर जाता

तमाम गुंजाइशों को लिये

मृत्यु पूर्व फिकर जो सताती है।

जान निकलने वाली अक़्सर

यूँ ही रुक जाती है।


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