गुरु
गुरु
टूटा एक तारा ज़मीं पर,
बड़ा मासूम बड़ा प्यारा था,
न नाम पता था उसको खुद का,
न उसका कोई ठिकाना था।
थाम कर उसकी उँगली जो,
आपने चलना सिखाया था,
चलते-चलते आज वो,
इस काबिल बन पाया था।
जो सीखा था कल आपसे,
आज दुनिया को सीखा रहा था,
बनकर वो फिर एक रोशनी,
सबको राह दिखला रहा था।
वह आपकी ही एक परछाई बन,
आपसे ही आज रूबरू हो रहा,
आपका ही शिष्य वो,
आपके नत-मस्तक हो रहा।
कि ऐसा गुरु गर मिल जाये,
हर तारे को, तो सोचो,
दुनिया कैसी होगी,
कि फिर कहीं कोई अँधेरा न होगा,
बस एक चमचमाती रोशनी होगी।
हम करते हैं आपको नमन,
हृदय से आभार,
शिक्षा का मूल्य जो सिखाते हैं हमें,
और जीने के गुण अपार !