तिरे चेहरे पे ठहरा चाँद
तिरे चेहरे पे ठहरा चाँद
तिरे चेहरे पे ठहरा चांद बहुत ही खूब लगता है,
कहीं देखूँ हसीं सबसे मिरा महबूब लगता है।
मिरी आँखों में रहकर तुम मिरे सपने हसीं कर दो,
बुझा कर ग़म के साये झिलमिलाती रोशनी भर दो।
वो तुम चुपके से जो नज़रें मिलाकर मुस्कराती हो,
तेरा हर बात पे यूँ खिलखिलाना खूब लगता है।
कभी गर तुमको मुझसे कोई शिकवा शिकायत हो,
कभी हो दिल में बेचैनी ख्यालों में बगावत हो।
मिरे हमदम तुम्हें नाराज़ रहने की इजाज़त है,
सनम का रूठ कर फिर मान जाना खूब लगता है।
तिरे चेहरे पे ठहरा चांद बहुत ही खूब लगता है,
कहीं देखूँ हसीं सबसे मिरा महबूब लगता है।