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Bhisham Kumar

Others

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Bhisham Kumar

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दिल की कश्मकश

दिल की कश्मकश

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किसे सुनाऊ अपने दिल की कश्मकश 

कैसे बताऊ मैं अपने दिल की कश्मकश

क्योंकि अजीब हैं, ये मेरे दिल की कश्मकश

उलझ सा गया हूँ, मैं इस कश्मकश में

किसकी सुनु दिल की या दिमाग की

दिल कहता हैं जी ले खुल के अपनी ज़िन्दगी 

उड़ता चल तू इन बादलों की तरह

लहराता चल तू इन फिज़ाओं की तरह 

मैं भी इन सपनों में खो जाता हूँ

तभी दिमाग कहता हैं, मत सुन तू इस दिल की बात

क्या रखा हैं इन सपनों में यार 

मेरी सुन बंद कर दे खुल के जीना 

तभी खुल पायेगा सफलताओं का ताना-बाना

उड़ना ही हैं तो इन बदलों से ऊपर क्यों नहीं

लहराना ही हैं तो प्रतीक बन के लहराओ

फिज़ाओं में क्या रखा हैं

किसकी सुनू? दिल की या दिमाग की 

अजीब है मेरे दिल की कश्मकश

अजीब हैं मेरे दिल की कश्मकश 

अब फिर दिल ने बोला दिमाग को

क्या पा लिया तूने सफलताओं के झंडे गाड़ के

फिर क्यों रोता हैं तन्हाईयों में

क्यों कहता हैं मैं अकेला हो गया 

क्यों कहता है मैंने ज़िन्दगी जी ही नहीं

दिमाग थोड़ा चुप रह कर बोला

इज़्ज़त मेरी या तेरी समाज में 

किसकी सुनु दिल की या दिमाग की

अजीब हैं मेरे दिल की कशमश

अजीब हैं मेरे दिल की कश्मकश। 


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