नशा
नशा
क्यों ना मैं
मयखाने जाऊं
क्यों ना मैं
बोतल पाऊं
हर बूंद में
स्फूर्ति है जिसके
क्यों ना मैं
उस बूंद को चाहूं
हर कण में वफा है
हुश्न की तरह
ना ये बेवफा है
इतनी वफा है इसमें तो
फिर क्यों ना
इसकी वफा मैं चाहूं ,
क्यों ना मैं
मयखाने जाऊं
लुटकर भी मैं
वफा करूंगा
नशा हुश्न का छोड़ मैं
बोतल का नशा करूंगा
होकर नशे में गलतान
जिन्दगी को मैं जीना चाहूं
क्यों ना मैं
मयखाने जाऊं
हर बूंद रसीली मीठी
गले उतर हार उतारे
सुख से है ओप-प्रोत
चैन भरी नींद सुलाये
इतने सुख हैं इसमें तों
इन सुखों को
मैं क्यों ना पाऊं,
क्यों ना मैं
मयखाने जाऊं
बोतल से दोस्ती
बोतल से प्यार
बोतल मेरी जिन्दगी
बोतल ही मेरी हार
ऐसा कैसे होगा
फिर क्यों ना मैं
बोतल चाहूं,
क्यों ना मैं
मयखाने जाऊं।