प्रकृति और नारी
प्रकृति और नारी
प्रकृति का दूसरा
रुप ही नारी है
प्रकृति सदैव से
देते आई है
निश्वार्थ प्रेम
अपने बच्चों को
बिन प्रकृति
मानव अधूरा है
और बिन नारी
पुरुष अधूरा है
फिर भी
निरादर प्रकृति का
नित पेड़ काटे जाते है
कांक्रीट के जंगल
बनाये जाते है
निरादर नारी का
भी होता है
सृष्टि अधूरी है
नारी के बिना
विरले ही समझ
पाते है
हर तरह से अपना
कर्तव्य निभाती
त्याग, ममता की
मूर्ति होती है
पिता, पति, पुत्र
की फ़िक्र में हर
पल रहती है
नारी व प्रकृति
से ही सृष्टि है
दोनों का
सम्मान करें..