बेजुबान समय की इजाजत
बेजुबान समय की इजाजत
बेजुबान इस समय को
अगर बोलने की इजाजत होती
कितनी दास्ताने रुबरू कर
हर चाहत जमाने में आबाद होती
हर लम्हा देता एक सलाह
क़िस्सों की महफ़िल तमाम होती
बयान न हुई उनकी हर तारीफ
हर अदा की गुलाम होती
बेजुबान इस समय को
अगर बोलने की इजाजत होती
कितनी दास्ताने रुबरू कर
हर चाहत जमाने में आबाद होती
हर लम्हा देता एक सलाह
क़िस्सों की महफ़िल तमाम होती
बयान न हुई उनकी हर तारीफ
हर अदा की गुलाम होती