ये बेवफा दुनिया और मेरी माँ
ये बेवफा दुनिया और मेरी माँ
एक दिन एक ख्याल आया।
कि इस बेवफाई की दुनिया में।
वफाई का ढोल तो सभी पीटते हैं।
दोस्ती में भी आज कल
कीचड़ मिल गया है।
दोस्ती को भी लोगों ने
बदनाम कर दिया है।
क्या अब भी है कोई रिश्ता
जो वफाई का ढोल ना पीटे ?
यार गुरु भी पढ़ाता है तो
दक्षिणा लेकर जाता है !
फिर एक दिन मैंने आज़माया
जो भी था मेरे करीब
उसका था मुझसे मतलब अज़ीज़
फिर वो सवाल
मेरे मन में आया।
क्या है कोई रिश्ता
जो वफाई का ढोल ना पीटे ?
फिर मेरी माँ आई
ख्याल में तो आखिरी में
पर ज़िंदगी में सबसे पहले आई।
हाँ, इसमें था कुछ खास।
क्योंकि इसके अंदर कमी ढूंढ़कर
मैं हो रहा था हताश।
यारों कोई कमी
मैं न इसमें ढूंढ़ पाया।
फिर वो सवाल मेरे मन में आया
क्या यही है वो रिश्ता
जो वफाई का ढोल ना पीटे ?
इसी ने मुझे जीवन दिया।
इसी ने मुझे चलना सिखाया।
इसी ने तो मुझे
मुश्किलों से लड़ना सिखाया।
ये मेरी मुश्किलों को
अपना समझती थी।
फिर वो सवाल मेरे मन में आया
क्या यही है वो रिश्ता
जो वफाई का ढोल ना पीटे ?
और इस बार जवाब मेरे दिल से आया
हाँ पगले ! यही है वो रिश्ता
जो वफाई का ढोल ना पीटे...।