माँ तुमने किया ही क्या हैं ❓
माँ तुमने किया ही क्या हैं ❓
जब मेरे बच्चे छोटे थे तो,
मेरे पति दुनिया से चले गए थे
और जो दूर के रिश्तेदार थे,
वो भी धीरे-धीरे खिसक रहे थे।
हालातों से कमजोर थी मैं,
जिम्मेदारियां ले नहीं सकतीं थी,
बच्चों का मुंह देखा तो लगा कि,
मैं चुपचाप बैठ भी नहीं सकती थी।
अपनों के ही अपने थे जिन्होंने,
मुझे मेरे ही घर से निकाला था,
धोखे से जायदाद नाम कर,
किसी और ने डेरा डाला था।
रहा तो कुछ भी नहीं था पास में,
पर मैं उन बच्चों को कैसे समझाती,
भूख रोटी की थी पेट में उनके,
आखिर मैं खाना भी कहां से लाती।
लोगों के घर में काम करते करते,
मैंने थोड़े कर करके पैसे निकाला,
बच्चों के खान पान के साथ,
एक या सा घर बना डाला।
सालों बीते जिंदगी में सोचा मैंने,
अब जिंदगी एक सुकून लाएगी,
क्या पता था कि वो फिर से,
परेशानियों के इम्तिहान लाएगी।
बच्चे जवान हुए और मैं बूढ़ी हुई
झोपड़ी की जगह बड़ा सा मकान है,
जिंदगी बड़ी आसानी से कट रही है,
और पोतों के शौक भी आलिशान हैं।
एक सवाल का जवाब मुझे ना मिला,
गरीबी के अलावा तुमने दिया क्या है?
मेरे बच्चे कह रहे थे मुझसे आखिर,
माँ, तुमने हमारे लिए किया ही क्या है?