आदमी
आदमी
जिस तरफ़ भी देखो, है परेशान आदमी
क्यों झाँकता नहीं अपना गिरेबान आदमी
मालूम है कि माटी में मिलना है उसे
बन रहा फिर भी क्यों अनजान आदमी
खुदा बनने की धुन में खोया इस कदर
कि भूल गया पहले है इंसान आदमी
“तलाश” कर ख़ुद में मोहब्बत तो ज़रा
खुदा ने बाँटा ये तुझे वरदान आदमी