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Vikas Sharma

Abstract

4.5  

Vikas Sharma

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सपनों का चक्रव्यूह

सपनों का चक्रव्यूह

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जिंदगी – सपना है ,

हम उड़ सकते हैं , जा सकते हैं ,

कहीं भी,द्वंद करते हुए अपनी इच्छाओं से ,

कभी अजीब से ,समझ से परे

असीमित कैनवस लिए ,

फिर भी कहीं तो बंधे से रहते हैं ,

सब-कुछ देख या महसूस कहाँ कर पाते हैं ,

हम सपने में ,


क्या जिंदगी में ऐसा नहीं ?

जीने ,कुछ करने की ,

कभी न खत्म होने वाली जिजीविषा

पर फिर बंध जाते हैं ,

बुलबुले से भी क्षणिक

बिलकुल –सपने जैसे

हम कारक हैं ,अपने सपनों के,

हमारे ज्ञान ,अनुभव के,

बस animate करते हैं –हमारे सपने


जिंदगी – हाँ हमारी जिंदगी

कभी फीकी सी ,कभी रंग से भरी ,

जब चाहे ये थम जाये ,

कौन देख रहा है ये सपना ,

किसके सपनों के पात्र हैं हम ,

उसके सपने ,उसमे फिर हमारे सपने ,

वो भी किसी के सपने में तो नहीं ,

कुछ सत्य है या है ही नहीं ,

दुनिया –ये जीवन

सपना –भ्रम

सपनों का चक्रव्यूह तो नहीं।


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