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Anita Agarwal

Inspirational

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Anita Agarwal

Inspirational

तुम हो

तुम हो

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तुम्हारे बालों की श्वेत लकीरें...

मुझे आभास दिलाती है.

कि हम वर्षों से साथ हैं

और आज भी,

कहीं कोई बासीपन...

महसूस नहीं होता

 

आज भी मेरे घर लौटने पर

तुम्हारे आँखों की चमक

मुझे भीतर तक रौशन कर देती है

प्रेम का घट छलकने को आतुर होता है...

चाय के प्याले के साथ

तुम्हारी दिन भर की बातें

चाय से ज़्यादा गर्माहट देती हैं.

रात के खाने के लिये…

तुम्हारे सब्जी काटते हाथ…

हाथों में आती ये सिकुड़ने

मुझे साथ बिताए वर्षों की…

याद दिलाती हैं…

पर अभी भी…

कहीं कुछ बासी नहीं लगता…

 

सब्ज़ी और तुम्हारी मिली जुली महक…

मुझे अपनेपन का एहसास दिलाती है

खाने की मेज़ पर

भोजन के साथ तुम

अपना प्रेम भी परोसती हो...

पहले निवाले के साथ,

तुम्हारी आँखें…

मेरे चेहरे पर टिक जाती हैं…

मुझे मालूम है...

तुम्हे क्या पूछना है?

मेरी नज़रों में तुम्हें

मिल जाता है अपना जवाब…

"हाँ, अच्छा बना है"

तुम्हारी मुस्कराहट…

होठों से चल के

आँखों तक पहुँच जाती है…

आँखों के नीचे पड़ती लकीरें…

कुछ और मुखर हो जाती हैं…

और कहती हैं…

हम वर्षों से साथ हैं

ये रोज़ होता है

मगर कहीं कुछ भी बासी नहीं

 

रात में तुम्हारा टी.वी. देखते हुए

वो अपने तकिये को

मेरे तकिये की तरफ खिसका लेना…

तुम्हारे खुले बालों का

मेरे कुर्ते की बाँह पर बिखर जाना…

तुम्हारा अधिकार भाव…

कहता है बार-बार…

कि तुम हो

मेरे लिये...


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