मैं नई क्रान्ति लिखता हूँ
मैं नई क्रान्ति लिखता हूँ
बिके देश की मर्यादा जब ,
लहू उबल पड़ता है
शोले धधकते सीने में ,
सैलाब फूट सा पड़ता है,
लो कलम में अपनी मैं ,
तेज़ाब भर के लिखता हूँ
मेरे प्यारे देश ,
मैं नई क्रान्ति लिखता हूँ |
खड़े हैं चारों तरफ,
आज़ादी बेचने वाले
अट्ठहास लगा रहे अब,
लोकतंत्र को नोचने वाले
शहीद हुऐ बेटों की ,
क़सम अब मैं लिखता हूँ
मेरे प्यारे देश ,
मैं नई क्रान्ति लिखता हूँ |
जब जब तू कलंकित होगा ,
मौन नहीं रहूँगा
अब कलम मेरी शोले उगलेंगे ,
दहकूँगा "रवि " सा अब ||
सवा सौ करोड़ के अरमानों का ,
होगा ख़ून अब माफ़ नहीं
उनके मासूम जज़बातों का ,
होगा अब इन्साफ यहीं
उनके सुप्त गुस्से की ,
उबाल अब मैं लिखता हूँ
मेरे प्यारे देश ,
मैं नई क्रान्ति लिखता हूँ |
होते रोज़ घोटाले देख ,
ख़ून नहीं किसका खौलेगा ?
अब मौन के फाटक टूटेंगे ,
हम शंख पाञ्चजन्य फूकेंगें
क्रान्ति के स्फुलिंग का ,
उद्घोष अब मैं लिखता हूँ
मेरे प्यारे देश ,
मैं नई क्रान्ति लिखता हूँ |