कल से
कल से
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रुकी हुई है बात कल की कल से,
कारवाँ बढ़ ही नहीं पाया उसके दर से।
जुस्तजू थी दीदार - ए - यार की,
पल वो भी रुक गया है कल से।।
काफिले होते नहीं इन यादों के
है कुछ फसाना सा इन यादों में।
निगाहे करम पर मुस्तक़बिल कहा !
ठहरा सा है बस ये मंजर कल से।।
है गर ख्वाहिशे ! जिंदा हो तुम,
गर कुछ नही तो क्या फायदा कल से ?
मिसाल - ए - महबूब देखो तो जरा
पाबंद कर गई है नजरो को बस कल से।।
[ © प्रमोद मेवाड़ा ]