तेरे बाद
तेरे बाद
वही नुक्कड़, वही शाम, वही चाय और झुकी नज़रें,
मुलाकात आखिरी भी क्या ख्याली मिली मुझको।
उदासियां उस वक़्त की कुछ इस कदर वहीं बिखर गयीं,
कहाँ लाल निशान वाली वो फिर प्याली मिली मुझको।
वो पहर उस शाम का उठ के तू जब जाने लगी,
उस शाम की वो रात बहुत सवाली मिली मुझको।
बुझती हुई सी चाँदनी ओढ़े हुए वो रात,
वो तू न थी, कोई तुझ से लिबास वाली मिली मुझको।
कुछ खो गया हो जैसे फिर यूँ ढूंढता मैं फिर रहा,
नहीं अब तलक वो तुझ सी अदा निराली मिली मुझको।
कहीं आंखें, कहीं पलकें, कहीं बाहें, कहीं जुल्फें,
टुकड़ों-टुकड़ों में मिली तू बहुत खाली-खाली मिली मुझको।
क्यों तू मुझे अब के यूँ बस हिस्सों में ही मिली,
क्यों नहीं तू बन के मेरी वाली मिली मुझको।