इंतज़ार गर्भ से है
इंतज़ार गर्भ से है
चौखट पर बैठा हैं इंतज़ार
उस कोने वाले कमरे में
अजनबी गंध से
सरोबार ,अपनी
देह टांग दी हैं
अलगनी पर और
रूह को बंद कर
एक बक्से में
दफन कर दी बासी यादे
उम्मीदें कूट कर भरली है
पोटली में
जिसका रंग गंदला हो चुका
मौसमों की मार से
अरमान भी अब सिसकते है
तलाईयो के नीचे कसमसाते हुए
तकियो को दिलासे है
थपथपाते हुए
बरसो पहले
कोई गया था
कहकर
जल्द लौट आने को
और चौखट
लहूलुहान हैं
खुरचे हुए नाखूनों के
गहरे निशानों से .........