पता ही नहीं चला
पता ही नहीं चला
कब बड़े हुए, पता ही नहीं चला
मुश्किलें ज़िंदगी की कब मुश्किल लगने लगी
पता ही नहीं चला,
नाज़ुक दिल था, बस शराफ़त जानता था
कब के लिए फ़ैसले, कब भारी पड़े
पता ही नहीं चला,
कभी गुरूर होता खुद पे, तो कभी ज़िल्लत महसूस होती
उसूल कुछ इस तरह बदलते रहे की
पता ही नहीं चला,
बदलते रहना चाहिए था वक़्त के साथ हमें
वक़्त ने कब हालात बदल दिए
पता ही नहीं चला।