जाति और प्यार
जाति और प्यार
मैंने इजहार किया था तो,
पता नहीं क्यों मुंह छुपा रही थी।
हां, मैंने अपनी आँखों से देखा था,
वह छिपकर मुस्कुरा रही थी।
फिर कहने लगी यह सही नहीं,
हमारा कोई मेलजोल नहीं है।
प्यार यूं ही नहीं किया करते,
क्योंकि ये ऐसा वैसा खेल नहीं है।
बहुत समझाया उसने मुझे पर,
मैं तो कुछ सुन ही नहीं पाया।
उसके निगाहों में छुपा वह प्यार
मन ही मन उसके गुण गाया।
बहुत मना करने पर मैं मान लिया,
अब उसके रास्ते कभी जाता नहीं।
वह आज भी मेरा इंतजार करती है,
प्यार छुपाना तो उसे आता नहीं।
सामने गया तो कहने लगी कि,
तुम यहां यूँ ही आया न करो,
मैने कहा इंतजार करते हुए तुम,
मुझे यूं ही बुलाया ना करो।
कहने लगी मां-बाप से प्यार है,
पर तुम्हारा भी इंतजार है।
तुम्हें मैं हां नहीं कह सकती क्योंकि,
मां-बाप की तरफ से इनकार है।
बोली तुम दूसरे जन्म आ जाना,
मैं तब तक तुम्हारा इंतजार करूंगी।
पर मेरी जातियों में घुल जाना,
फिर मैं खुलकर तुमसे प्यार करूंगी।