कैसा विकास
कैसा विकास
इस तरह का शोर मचा है कि,
गाँवों को शहर बनाया जा रहा है।
जहाँ बूढ़े बरगद पे पंछी बसेरा करते थे,
वहां कैद पंछियों का चिड़ियाघर बनाया जा रहा है।
जिस कुएँ का पानी अमृत से मीठा होता था,
उसको ढककर मिनिरल वाटर प्लान्ट लगाया जा रहा है।
जिस जंगल में पशु विचरण करते थे,
उसको काट कर हाईड और स्किन उद्योग बिठाया जा रहा है।
खेत खलिहानों से फसल काटकर
रेल लाइन बिछाया जा रहा है
छद्म विकास के नाम पे केवल
जीव जंतुओं का नाश किया जा रहा है