हमने भी तो देखा था...
हमने भी तो देखा था...
कि हमने भी तो देखा था
सपना इक ज़रा हटके
ज़माने संग भिड़ी किस्मत
मगर हम तो लड़े डट के
मैं कहता था, "मुझे देखो..."
वो कहती थी, "पराये हो..."
मैं देता था उसे उल्फ़त
वो देती थी मुझे फटके
मैं बोला,
"सुन अरे पगली...
मैं बादल हूँ तू है बिजली...
मैं सूरज तू मेरी चँदा...
मिलेंगे जब, ग्रहण होगा..."
वो कहने लगी,
"ज़रा संभलो...
ग्रहण अच्छा नहीं, समझो..."
मैं बोला,
"क्यूँ तू डरती है ?
मैं जानू तू भी मरती है...
ग्रहण में साथ अगर तुम हो
नहीं परवाह हो चाहे सौ
ग्रहण में साथ अगर तुम हो
नहीं परवाह हो चाहे सौ...!"