संस्कृति
संस्कृति
आँचल फैलाये खड़ी संस्कृति
भूल ना जाना मतवाली में,
कल की बातें खिली अंगड़ाई
आनंद भरिये इस जीवन में।
परंपराओं का मान बढ़ाकर
झोली भर दो संस्कृति की,
आज क्या हो रहा यहाँ पर
अनदेखा न करें त्यौहारों को।
दिवाली, दशहरा, होली को
श्रृंगार करे खूब अच्छाई का,
मन ही मन तुम आज के लिए
धन्यवाद मानो जीवन का।
आर्यावर्त में फिर से आइये
मन की आशा पुरी करने को,
धूमिल करिये वारदातों को
पहचानों विकट समय को।
बालक बूढ़े सब मिल गीत गायें
भारत की महान संस्कृति पर,
भूलो सब भेदभाव यहाँ पर
बन जाएँ हिंदुस्तानी इस भूमि पर।