बस तू आजा
बस तू आजा
बारिश की बूंदें चिढ़ा रही,
कामुकता मन में जगा रही।
बस प्रेम सरस आलिंगन भर,
अधरों पर प्यार अमिट दे जा
कुछ और नहीं, बस तू आजा।
सावन की बूंदाबांदी में,
गर तुम होते मेरे संग में।
करती सब कुछ तुझको अर्पण,
श्रृंगार सजल मादक यौवन।
वर्षों की प्रेम पिपासा को,
बस तृप्त हृदय जल्दी कर जा
कुछ और नहीं, बस तू आजा।
ये बादल भी बेदर्द बना,
देखो बारिश भी नहीं थमा।
आओ मिलकर भीगे दिल से,
रिमझिम सावन के बूंदों से।
तन-मन की विरह वेदना को,
बस प्रेम आलिंगन में भर जा
कुछ और नहीं, बस तू आजा।
मौसम कितना बेईमान हुआ,
तुझ बिन मेरे नस-नस को छुआ।
सोई तृष्णा झकझोर गया,
मैं उठ बैठी, वो छोड़ गया।
निष्प्राण पड़े इस तन-मन को,
सांसों में सांस सगर भर जा
कुछ और नहीं, बस तू आजा।