शिव- अर्पण
शिव- अर्पण
जपत निरंतर शिव का नाम,
सुमिरन हर पल त्रिलोकिनाथ।
जब मन मंदिर में वास है शिव का।
काम ,क्रोध, मद मोह है किसका।
भव सागर से सब तर जाते ,
जब नित्यानंद में खो जाते।
शिव चरणों में ध्यान लगाएँ,
जिससे जीवन लक्षित हो जाए।
हे डमरू वाले जगत-पिता ,
हे त्रिनेत्र महेश्वर मल्लिकार्जुना।
शरण तुम्हारी आए हैं,
श्रद्धा सुमन लाएँ हैं।
त्रिपुरारी त्रिलोकिनाथ,
डमरूवाले तुझे कोटि प्रणाम ।
तेरे चरणों में चारों धाम ,
रोम-रोम में है शिव नाम ।
शिवोहम,शिवोहम,
शिव है जीवन शिवो हम।
सर्वव्यापक तू सर्वगुणी,
तेरी भक्ति से है शक्ति हरघड़ी।
सकल दुःख संताप हरता,
हे जगत कल्याण कर्ता।
सिध्देश्वर, विश्वेश्वर ,
है तू सबका पालनकर्ता।
तेरी शीतल छाया में है मुक्तिधाम,
शिव धुन बजे ,
ले हरपल शिव का नाम।
हे महिमा तेरी न्यारी ,
हे दया के सागर ,
तेरी भक्ति बड़ी निराली।
तेरे चरणों में मुक्ति धाम,
शिश नवाऊँ, लूँ शिव का नाम।
गंगाधराय, भोले सोमेश्वराय,
कण कण में रमते विश्वनाथाय।
नीलकंठ है जगतपिता ,
हर-हर भोले शिवा शिवा।
शिव धुन है सात सुरों की सरगम,
सत्यम् शिवम् सुंदरम।
हे भुवनेश्वर मैं नतमस्तक,
कर कमलों से अर्पित करुणा अमृत ।
परमसुंदर रूप,अद्भुतवाणी,नृत्य अद्भुत ।
है अद्भुत सब अद्भुत अद्भुत ।
महिमा तेरी गहरी है ,
सर्वत्र शिव भक्ति की लहरी है।
तेरे संस्मरण से हुई संस्कृति गौरवान्वित,
तेरे ही प्रेम से है सभी आच्छादित ।
देवों के देव विश्वेश्वराय,
भज हरिओम नमः शिवाय।
हर हर भोले गंगाधराय,
कण कण में रमते विश्वनाथाय ।
हर हर महादेव शिवशंभो,
रोम रोम में है नमो नमो।
वंदन भोले गौरीशंकर,
शिशनवाऊँ शिवभक्ति पाऊँ।
हे प्रजापालक जगसंचालक,
सर्वशांति सर्वसुख की तुझसे कृपा पाऊँ।
सिद्ध सन्यासी कैलाश निवासी ।
हे अविनाशी अभयंकर,भीमाशंकर नागेश्वर।
हे भाग्यविधाता ,
जग के दाता आदिश्वर ।
है गणेश, कार्तिकेय के प्यारे,
प्रभु जग में सबसे निराले।।