कवि
कवि
शब्दों की भीड़ में
मैं कवि को ढूँढ़ रही हूँ
संसार की नियमों ने
जिससे कहीं छुपा रखा है
उस कवि प्राण को ढूँढ़ रही हूँ.
शून्य ही शून्य हैं
भाषाओं की अधरों पे
कड़ी लगी हैं
महाकाव्य की तलाश मे
भटकते उस कवि सत्ता को
ढूँढ़ रही हूँ.
मैंने परखा हैं
इर्ष्या मन को
आन्दोलित करती हैं
प्रेम भावना की
शीतल स्पर्श की शब्द को पाने
अद्य्म उत्साह से भरा
उस कवि क्षत को ढूँढ़ रही हूँ.
दुविधाओं से उलझे
शब्दों के सागर को
मंथन करता उस
कवि मन को ढूँढ़ रही हूँ.
वह कहीं न कहीं है
प्रकृति की
किसी सुंदर गीत में
या बर्फीली पहाड़ी धुन में
या फ़िर किसी कुंवारी कली की
सपने मे
मधुमक्खी की तान में.
मिलेगा मुझे
मैं पूरी चमन में
वह काव्यमय कवि को
ढूँढ़ रही हूँ।