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Madhu Saxena

Inspirational

3  

Madhu Saxena

Inspirational

एक बार आओ तो

एक बार आओ तो

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मेरी स्मृतियों से निकल कर
कभी तो आओ सामने
इतने बरसों बाद देखो तो मुझे...

बालों में चाँद ओर चांदनी दोनो
शबाब पर है...

झुर्रियों ने आसन जमा लिया
न जाने के लिए
बल्कि उनके सम्बन्धी बढ़ते जा रहे...

दिखने के दांत सलामत
पर दाढ़ें हिलने डुलने लगी

घुटनों की तो पूछना ही मत
आपरेशन के बाद भी नखरे कम नहीं हुए...

पर्स में लिपस्टिक, शीशा और इत्र के बदले
रहता है इन्हेलर।
मोटा सा चश्मा ही आधी जगह घेर लेता है
बाकी जगह बी.पी, शुगर की दवाईयां...

आधार कार्ड पर ज़िन्दगी आधारित हो गई
मेरे ज़िंदा रहने का सबूत है वो
वरना आज धड़कन ओर सांसों पर
कौन यकीन करता है?

यही सुनती हूँ बार बार कि
अब इस उम्र में क्या करोगी?
समझ नहीं आता
साठ के बाद क्या करने को कुछ नहीं होता?

इस नन्हे दिल का क्या करूँ
उड़ता है आज भी तितलियों संग
'मेरे ख़्वाबों में जो आए 'गीत ही गुनगुनाती हूँ...
होंठो को गोल करके तेज सीटी
चुपके से बजा देती हूँ बाहुबली देखते हुए...

स्मृतियों का बोझ बढ़ता जा रहा
एक बार आओ तो स्मृतियों से निकल कर
बोझ कुछ कम हो
झुके कन्धों और पीठ को तान कर
खड़ी हो जाऊं कुछ देर...


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