दीप
दीप
अमावस्या की काली रात
है सघन अन्धकार अपार|
मचल उठे कुछ नव दीये
उत्सर्ग का अमृत पिये|
पल-पल तिल-तिल जलते|
निज प्राण उत्सर्ग करते|
हटाने को गहन तिमिर|
करने को प्रकाश स्थिर|
श्री राम के स्वागतार्थ,
लक्ष्मी-गणेश के पूजनार्थ
हर घर, आँगन सजाने को,
प्रेम, आनंद बढ़ाने को|
दीपों की है अपार शक्ति|
तम-जय की अद्भुत भक्ति|
भर देती ऊर्जा जन-जन में|
पुरुषार्थ जगाती तन-मन में|
अमावस्या की सजती रात|
ज़मीं पर तारे करते बात|
ज्योतिर्मय पर्व दीपावाली|
सद्भाव जगाये दीपावाली|