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Mohanjeet Kukreja

4.9  

Mohanjeet Kukreja

अभाव

अभाव

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एक अपनेपन का एहसास

होता है मुझे कभी कभी... 

फिर अगले ही किसी पल

अजनबी तुम्हें पाता हूँ !


कभी तो तुम्हारे बिना ही

साथ रहता हूँ मैं तुम्हारे,

और कभी तुम्हारे सामने

भी तन्हा सा हो जाता हूँ !  

                                               

साथ न रहो तुम बेशक

कभी मेरे पास तो रहो...

मैं ही कहा करूँ हमेशा

तुम भी तो कुछ कहो !


आज़मा लो मुझे तुम

या फिर अपना समझो...

जान लो पूरी तरह मुझे

फिर हिचकिचाहट न हो


हम दोनों वैसे एक हैं...

कहीं कोई न अलगाव,

दूरी कहीं नहीं है कोई

बस समर्पण का अभाव !


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