जानवर की खाल
जानवर की खाल
छोटी सी उम्र में बदल कर देखो चाल बैठ गया,
पहनके इंसाँ ही जानवर की देखो खाल बैठ गया।
बड़ी बहुत हो गई ख्वाहिशों की बोतल उस दिन से,
रिश्तों का कद भूल जब कोई देखो नाल बैठ गया।
मनाया मगर माना नहीं रुठ कर जाने वाला हमसे,
नमालूम बेवजह ही फुलाकर देखो गाल बैठ गया।
उलझने सुलझाने को खुल के खड़े रहे हम तो आगे,
बनाके परिस्थितियों का ही वो देखो जाल बैठ गया।