तुम्हारा एहसास !
तुम्हारा एहसास !
तुम्हारे जाने के बाद भी उस कमरे के
एक कोने में बैठकर मैं निहारता रहा था
यूँ ही पूरा का पूरा कमरा जहां चारों ओर
अस्त व्यस्त सी तुम बिखरी हुई पड़ी थी
उस हेंगर पर भी जहां तुमने आकर अपनी
साड़ी टांगी थी उस चादर की सिलवटों में भी थी
और सोफे पर भी थी तुम जहां बैठकर तुमने
साथ मेरे अपने पसंद की अदरक वाली चाय पी थी
पूरा कमरा तुम्हारी सौंधी-सौंधी महक में अब भी ठीक
वैसे ही महक रहा था जैसे वो तुम्हारे आने पर महका था
मैं चाहता था तुम्हें सलीके से समेट कर केवल अपने
ज़हन में रखना पर तुम इस कदर महक रही थी
कि मैं चाह कर भी नहीं समेट पाया था तुम्हें और
तुम्हें यूँ ही हमेशा-हमेशा के लिए वहां रहने दिया था
आज जब तुम नहीं हो साथ मेरे तब भी वो कमरा
मुझे वहां तुम्हारे होने का एहसास कराता रहता है
अब मैं चाहता हूँ तुम उस कमरे की ही तरह मेरे
ज़हन में काबिज़ रहो जैसे उस कमरे में रहती थी !