मुस्कराये नहीं हम कब से ,यह हम
जानते नहीं ?
दिलो.. जाँ में बसे हो तुम पर क्यों
मानते नहीं ?
बेरुखी से तुमने जज्बात नकार दिये
इस दिल के,
रहते हो ख्यालों में ....'दूर जाते
क्यों नहीं ?
चाँद बन छाए हो मेरे दिल पर ..
तुम ही तुम
चाँदनी फिर मुझे बनाते
क्यों नहीं ?
सौगात देकर आँसुओं की इन निगाहों को '
अब आँखों से इनको बहने देते क्यों नहीं ?
साँसें हैं थमी थमी सी बिन अब तेरे मेरी '
अलविदा फिर क्यों कहने मुझे देते नहीं ?
गुजारना है मुश्किल एक लम्हा बिन तेरे ,
फिर क्यों तुम मेरे जज्बात समझते नहीं ?
राशि सिंह