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Rashi Singh

Abstract

0.9  

Rashi Singh

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kavita

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मुस्कराये नहीं हम कब से ,यह हम 
जानते नहीं ?
दिलो.. जाँ में बसे हो तुम पर  क्यों 
मानते नहीं ?

बेरुखी से तुमने जज्बात नकार दिये 
इस दिल के,
रहते हो ख्यालों में ....'दूर जाते 
 क्यों नहीं ?

चाँद बन छाए हो मेरे दिल पर ..
तुम ही तुम 
चाँदनी फिर मुझे बनाते
क्यों नहीं ?

सौगात देकर आँसुओं की इन निगाहों को '
अब आँखों से इनको बहने देते क्यों नहीं ?

 
साँसें हैं थमी थमी सी बिन अब  तेरे मेरी '
अलविदा फिर क्यों कहने मुझे देते नहीं ?

गुजारना है मुश्किल एक लम्हा बिन तेरे ,
फिर क्यों तुम  मेरे जज्बात समझते नहीं ?

राशि सिंह


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