चंदा से तुम
चंदा से तुम
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खुद को निहारूँ मंत्रमुग्ध-सी
खुद पर ही रीझूं बार-बार
जब दर्पण में नज़र आते हो तुम
खुद से शर्माऊं शर्मीली-सी
खुद पर इतराऊं बार-बार
जब अंतस में उतर जाते हो तुम
रोक न पाऊं चंचल हिरणी-सी
मन ही मन मचलूं बार-बार
जब अलकों में ठहर जाते हो तुम
हवा संग मैं डोलूं खुशबू-सी
मंद-मंद मुस्काऊं बार-बार
जब ख्यालों में कभी आते हो तुम
निखरी मैं जैसे भई चांदनी
तुममें मैं सिमटूं बार-बार
जब चंदा से नज़र आते हो तुम