कल - आज
कल - आज
तन्हाई में अक्सर
ज़ेहन में एक ख़्याल आता है
छू कर मेरे दिल को
एक टीस छोड़ जाता है
कि क्यूँ ज़िंदगी की दौड़ में
हम अक्सर इतने आगे निकल जाते हैं
कि ख़ुशियों को अपनी
हम कहीं पीछे छोड़ आते हैं
कि क्यूँ कल तक जो सपने थे
आज वो महज़ बातें हैं
कि क्यूँ कल तक जो मंज़िल थी
आज वो महज़
मील का एक पत्थर है
कि क्यूँ कल तक जो हमराही थे
आज उनकी राहें ही अलग हैं
कि क्यूँ कल तक जिन यारों के साथ
हम जीने - मरने को तैयार थे
आज उनसे मिलने को
इक अदद मुलाक़ात भी दुश्वार है
कि क्यूँ कल तक जो दोस्त
अनकही बातें भी समझते थे
आज उनकी आवाज़ सुनने को भी
ये कान तरसते हैं...!