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Gulab Jain

Drama Inspirational

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Gulab Jain

Drama Inspirational

तजुर्बा ज़िंदगी का

तजुर्बा ज़िंदगी का

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ऐसा नहीं कि मुश्किलें आईं नहीं

बस इरादों को मेरे मिटा पाईं नहीं

ख्वाब पतझड़ के पत्तों की तरह टूट गए

लौट के फिर बहार आई नहीं

जब तलक सांस है बाक़ी अपनी

दर्द की क़ैद से कोई रिहाई नहीं

ज़िन्दगी गुज़री उसकी गरीबी में

दौलत - ए - इश्क़ जिसने पाई नहीं

हो नहीं सकता तजुर्बा ज़िंदगी का

जब तलक ठोकरें यहाँँ खाईं नहीं !


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