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S Ram Verma

Abstract

5.0  

S Ram Verma

Abstract

शब्द शब्दों में तलाशते मुझे है

शब्द शब्दों में तलाशते मुझे है

1 min
490


शब्द शब्दों में ही कहीं

तलाशते है मुझ को


और मैं उन शब्दों में

तलाशता हूँ तुम को


जैसे रात पत्तियों सी

होकर टटोलती है सबनम को


चाँद मंद-मंद जुगनू सा

होकर खोजता है चकोर को

 

नदी खामोश खल-खल

बहती है पकड़ कर अपने किनारों को


तब दूर कंही सन्नाटों के

जंगल में सुनाई देता है मुझ को



कुछ खनकते शब्दों का शोर इधर

पगडण्डी ताकती है अपने किनारों को


तकते एक दूजे को बढ़ते है दो कदम

और उन कदमो में थामते है मुझ को


और मैं उन कदमो में एक

बस तलाशता हूँ अपनी मंज़िल को


शब्द शब्दों में ही कहीं

तलाशते है मुझ को


और मैं उन शब्दों में

तलाशता हूँ तुम को


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