शब्द शब्दों में तलाशते मुझे है
शब्द शब्दों में तलाशते मुझे है
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शब्द शब्दों में ही कहीं
तलाशते है मुझ को
और मैं उन शब्दों में
तलाशता हूँ तुम को
जैसे रात पत्तियों सी
होकर टटोलती है सबनम को
चाँद मंद-मंद जुगनू सा
होकर खोजता है चकोर को
नदी खामोश खल-खल
बहती है पकड़ कर अपने किनारों को
तब दूर कंही सन्नाटों के
जंगल में सुनाई देता है मुझ को
कुछ खनकते शब्दों का शोर इधर
पगडण्डी ताकती है अपने किनारों को
तकते एक दूजे को बढ़ते है दो कदम
और उन कदमो में थामते है मुझ को
और मैं उन कदमो में एक
बस तलाशता हूँ अपनी मंज़िल को
शब्द शब्दों में ही कहीं
तलाशते है मुझ को
और मैं उन शब्दों में
तलाशता हूँ तुम को