मैं अब इस दिल की क्यों ना मानूं...
मैं अब इस दिल की क्यों ना मानूं...
जो कहता है दिल वो करती हूँ मैं अब इस दिल की क्यों ना मानूं
किसी को सही लगे या फिर लगे गलत मैं इस दुनिया के भरम अब क्यों पालूँ
है जीवन मेरा और ये मेरा अधिकार है रहूं बंधन में मैं या नीलगगन में पंख पसारुं
मैं हूँ खुद मेरे लिए बस इतना ही काफी है क्यों आँचल अब मैं फैलाऊं क्यों भीख दया की मैं मांगू
तेरे ही तरह मेरे भी कुछ अरमान हैं, हैं मेरे भी कुछ ख्वाब मेरी भी हौसलों की उड़ान है
नारी होना वरदान है ये अभिशाप नहीं
क्यों करूँ मैं हर बार खुद को साबित, क्यों अग्नि परीक्षा की कसौटी पर परखी जाऊं
है ये मेरी ही ज़िन्दगी मेरे ही जीने के ये अंदाज़ हैं
क्यों सोचूं ये की कोई क्या कहेगा क्यों मैं कोई बोझ सिर पर अब उठाऊं
जो कहता है दिल वो करती हूँ, मैं अब इस दिल की क्यों ना मानूं