चुनाव जब आता हैं !...
चुनाव जब आता हैं !...
चुनाव जब आता है...दिलचस्प माहौल होता है
मानो जैसे जहाँ देखो वहाँ, खुशियाँ ही खुशियँ हो !
मिलजुल कर सभी खाते, झूमते नजर आते हैं
पल भर के लिये लगता है,
स्वर्ग ही धरती पर उतर आया है !
चुनाव जब आता हैं...दिलचस्प माहोल होता है
हर कोई सोचता, कैसे फँसाया उसे,
मन ही मन खुश हो जाता है !
आज तक किसी को समझ में नहीं आया,
खुद को ही फँसा रहे हैं हम
मुंगेरीलाल के सुनहरे सपने,
जाने कब तक देखने पडेंगे हमें !
चुनाव लड़ने वाला सोचता है,
खाओ, पीओ, जी भरके
इसके बाद पाँच साल तक,
मैं तुम्हें कहाँ मिलने वाला हूँ !
मतदाता सोचता है, अभी तो सही वक्त है,
अच्छा हाथ आया
बहती नादियाँ है, हाथ धोलो, ऐश करो,
बाद में हमें कौन पूछने वाला हैं ?
सभी पार्टींयो के घर पर,
छह-सात झंडे शान से लहराते हैं
बाप- बेटा, छोटा- बड़ा सभी,
अलग-अलग पार्टी के डंडे हैं !
ना किसी को गलती का अहसास है,
ना शर्मिन्दगी महसूस होती है
यह कैसा लोकतंत्र ? और स्वराज हमारा ?
हम कैसे बहके जा रहे हैं !
कोई कहता है, हमारी भूल, कमल का फूल,
हमें तो हाथ पर ही भरोसा है
कोई कहता है, हमारा लक्ष्य,
सबका साथ, सबका विकास
जो आज तक नहीं हो पाया हैं !
कोई कहता है, सबसे सस्ती, सबसे अच्छी
हमारी तो रेल इंजन और बोलती पटरी है
कोई कहता है, महंगाई कितनी बढ़ी है,
हम गरीबों की तो साइकिल ही अच्छी है !
कोई कहता है, हमारी आन-बान-शान है
हमारा विचलित धनुष बाण
कोई कहता है, एकता का एक ही नारा है ..
इला, हातोडा तारा हैं !
कोई कहता है... हम तो चाहते हैं
आम आदमी का राज ही होना, झाडू हमाराी है
सभी कहते हैं, हमें चुनके दो,
बाकी सब चोर हैं, हम ही आपके तारणहार है !
मतदाता संभ्रम में ... चुनके दे भी तो किसे ?
एक ईंट तो दुसरा पत्थर है !
मार तो पड़नी ही है ...पत्थर से ईंट भली...
कभी ईंट, कभी पत्थर चुनते हैं।
आने वाले आते हैं .. किये वादे भूल जाते हैं
और फिर पाँच साल सिर पर बैठते हैं
मनमानी करते हैं, किसको किसकी क्या पड़ी हैं ?
अपनी जेबें भरते हैं !
क्या शहीदों की शहादत बेकार गई ?
कैसी आजादी हमने पायी हैं।
स्वार्थ पीडित गुटबदलू नेता,
भ्रष्ट नौकरशाह, हकसे अंजान मतदाता हैं !
आजादी के सत्तर साल में ..
हमने सबको रोटी, कपडा और मकान दिया ?
यही हाल रहा तो क्या हम भारतवर्ष को
फिर से सोने कि चिड़िया बना पायेंगे ?